मैं तैनू फ़िर मिलांगी


 

अमृता प्रीतम जी का लिखा हुआ हो और गुलजार जी की आवाज़ हो तो इसको कहेंगे सोने पर सुहागा …। यह कविता उन्होंने अपने आखिरी दिनों में इमरोज़ जी के लिए लिखी थी । इस कविता का एक एक लफ्ज़ प्यार का प्रतीक है । अमृता बहुत बीमार थी उन दिनों …वह अपने आखिरी दिनों में अक्सर तंद्रा में रहती थी । कभी कभी एक शब्द ही बोलती लेकिन इमरोज़ के लिए हमेशा मौजूद रहती पहले की तरह ही हालांकि इमरोज़ पहले की तरह उनसे बात नही कर पाते थे पर अपनी कविता से उनसे बात करते रहते .। .एक बार खुशवंत सिंह जो अपने घर में अक्सर छोटी छोटी सभा गोष्टी करते रहते थे ..इन दोनों को कई बार बुलाया पर यह दोनों नही जाते थे तब उन्होंने पूछा अमृता को फ़ोन कर के पूछा था कि तुम बाहर क्यों नही निकलते हो ..क्या करते रहते हो सारा दिन तुम लोग ?

अमृता ने जवाब दिया गल्लां “”[बातें ]

उन्होंने हंस कर कहा इतनी बातें करते हो तुम दोनों की खतम नही होती है तब अमृता सिर्फ़ हंस कर रह गई ..पता नही दोनों कैसी क्या बातें करते थे कभी शब्दों के माध्यम से कभी खामोशी के जरिये पर दोनों को साथ रहना पसंद था एक दूसरे के आस पास रहना पसंद था ..

मैं तैनू फ़िर मिलांगी
कित्थे ? किस तरह पता नई
शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के
तेरे केनवास ते उतरांगी
जा खोरे तेरे केनवास दे उत्ते
इक रह्स्म्यी लकीर बण के
खामोश तैनू तक्दी रवांगी

जा खोरे सूरज दी लौ बण के
तेरे रंगा विच घुलांगी

जा रंगा दिया बाहवां विच बैठ के

तेरे केनवास नु वलांगी
पता नही किस तरह कित्थे
पर तेनु जरुर मिलांगी
जा खोरे इक चश्मा बनी होवांगी
ते जिवें झर्नियाँ दा पानी उड्दा
मैं पानी दियां बूंदा
तेरे पिंडे ते मलांगी
ते इक ठंडक जेहि बण के
तेरी छाती दे नाल लगांगी
मैं होर कुच्छ नही जानदी

पर इणा जानदी हां

कि वक्त जो वी करेगा
एक जनम मेरे नाल तुरेगा
एह जिस्म मुक्दा है
ता सब कुछ मूक जांदा हैं

पर चेतना दे धागे

कायनती कण हुन्दे ने
मैं ओना कणा नु चुगांगी
ते तेनु फ़िर मिलांगी

******
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी
कहाँ किस तरह पता नही
शायद तेरी तख्यिल की चिंगारी बन
तेरे केनवास पर उतरुंगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
खामोश तुझे देखती रहूंगी
या फ़िर सूरज कि लौ बन कर

तेरे रंगो में घुलती रहूंगी
या रंगो कि बाहों में बैठ कर

तेरे केनवास से लिपट जाउंगी

पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे जरुर मिलूंगी

या फ़िर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है

मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूंगी

और एक ठंडक सी बन कर
तेरे सीने से लगूंगी

मैं और कुछ नही जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जी भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म खतम होता है
तो सब कुछ खत्म हो जाता है

पर चेतना के धागे

कायनात के कण होते हैं

मैं उन कणों को चुनुंगी
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी !!

 

ਮੈਂ ਤੈਨੂ ਫ਼ਿਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

ਕਿੱਥੇ ? ਕਿਸ ਤਰਹ ਪਤਾ ਨਈ

ਸ਼ਾਯਦ ਤੇਰੇ ਤਾਖਿਯਲ ਦੀ ਚਿਂਗਾਰੀ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਤੇ ਉਤਰਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਦੇ ਉੱਤੇ

ਇਕ ਰਹ੍ਸ੍ਮ੍ਯੀ ਲਕੀਰ ਬਣ ਕੇ

ਖਾਮੋਸ਼ ਤੈਨੂ ਤਕ੍ਦੀ ਰਵਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਸੂਰਜ ਦੀ ਲੌ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਰਂਗਾ ਵਿਚ ਘੁਲਾਂਗੀ

ਜਾ ਰਂਗਾ ਦਿਯਾ ਬਾਹਵਾਂ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ

ਤੇਰੇ ਕੇਨਵਾਸ ਨੁ ਵਲਾਂਗੀ

ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਸ ਤਰਹ ਕਿੱਥੇ

ਪਰ ਤੇਨੁ ਜਰੁਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

ਜਾ ਖੋਰੇ ਇਕ ਚਸ਼੍ਮਾ ਬਨੀ ਹੋਵਾਂਗੀ

ਤੇ ਜਿਵੇਂ ਝਰ੍ਨਿਯਾਁ ਦਾ ਪਾਨੀ ਉਡ੍ਦਾ

ਮੈਂ ਪਾਨੀ ਦਿਯਾਂ ਬੂਂਦਾ

ਤੇਰੇ ਪਿਂਡੇ ਤੇ ਮਲਾਂਗੀ

ਤੇ ਇਕ ਠਂਡਕ ਜੇਹਿ ਬਣ ਕੇ

ਤੇਰੀ ਛਾਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਲਗਾਂਗੀ

ਮੈਂ ਹੋਰ ਕੁੱਛ ਨਹੀ ਜਾਨਦੀ

ਪਰ ਇਣਾ ਜਾਨਦੀ ਹਾਂ

ਕਿ ਵਕ੍ਤ ਜੋ ਵੀ ਕਰੇਗਾ

ਏਕ ਜਨਮ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਤੁਰੇਗਾ

ਏਹ ਜਿਸ੍ਮ ਮੁਕ੍ਦਾ ਹੈ

ਤਾ ਸਬ ਕੁਛ ਮੂਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈਂ

ਪਰ ਚੇਤਨਾ ਦੇ ਧਾਗੇ

ਕਾਯਨਤੀ ਕਣ ਹੁਨ੍ਦੇ ਨੇ

ਮੈਂ ਓਨਾ ਕਣਾ ਨੁ ਚੁਗਾਂਗੀ

ਤੇ ਤੇਨੁ ਫ਼ਿਰ ਮਿਲਾਂਗੀ

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

Disclaimer

© આ બ્લોગમા રજૂ થયેલી કૃતિઓના હક્કો (કોપીરાઇટ) જે તે રચનાકાર ના પોતાના છે. આ બ્લોગ પર અન્ય રચયિતાઓની રચનાઓ મૂકવામાં આવી છે તેને કારણે જો કોઇના કોપીરાઇટનો ભંગ થયેલો કોઇને જણાય અને તેની મને જાણ કરવામાં આવશે, તો તેને તરત અહીંથી દૂર કરવામાં આવશે. Disclaimer : This blog is not for any commercial purposes. The entries posted on this blog are purely with the intention of sharing personal interest.

Translate

%d bloggers like this: