तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है
जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ
समझ ना इनको वस्त्रा तू
जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ
समझ ना इनको वस्त्रा तू
ये बेड़ियाँ पिघल के
बना ले इनको शस्त्र तू
बना ले इनको शस्त्र तू
तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है
चऱित्र जब पवित्र है
तो क्यों है ये दशा तेरी
चरीत्र जब पवित्र है
तो क्यों है ये दशा तेरी
ये पापियों को हक़ नहीं
की लें परीक्षा तेरी
की लें परीक्षा तेरी ..
तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
जला के भस्म कर उसे
जो क्रूरता का जाल है
जला के भस्म कर उसे
जो क्रूरता का जाल है
तू आरती की लौ नहीं
तू क्रोध की मशाल है
तू क्रोध की मशाल है
तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है
चुनर उड़ा के ध्वज बना
गगन भी काप काँपेगा
चुनर उड़ा के ध्वज बना
गगन भी काप काँपेगा
अगर तेरी चुनर गिरी
तो एक भूकंप आएगा
तो एक भूकंप आएगा
तू खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है .
~ तनवीर गाज़ी
Oct 16, 2017 @ 04:56:23
Beautiful poem….