जीवन में आज एक उमदा व्यक्तित्व से रूबरू होने का – उन्हें सुनने का और समझने का अवसर मिला । जीवन के हर मुकाम में आये संघर्षो के प्रति आपका नज़रिया काफी प्रेरणात्मक रहा है । परवरदिगार से एक ही कामना – इस जहाँ में ऐसी ही ‘अनुपम’ शख्सियत बनाता रहे जो किसी के लिए आशा की ‘किरन’ बन सके । मेरी बेहद पसंदीदा काव्य पंक्तियाँ कल प्ले में फिर से एकबार सुनने को मिली – “लहरो से डरकर नौका पर नहीं होती ” Sir, You are truly an inspiration.More power to your work and words. Prayers! ~ जगत निरुपम
Place: Vadfest,Vadodara Date:26-01-2015
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वाश रगों मे साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
डुबकियां सिन्धु मे गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोंती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है , इसे स्वीकार करो ,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो .
जब तक ना सफल हो , नींद चैन को त्यागो तुम ,
संघर्ष का मैदान छोड़कर मत भागो तुम.
कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
~ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
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