भरी दुपहरी में अंधियार,
भरी दुपहरी में अंधियार,
सूरज परछाई से हरा,
सूरज परछाई से हरा,
अंतरतम का नेह निचोड़े,
बुझी हुई बाती सुलगाएं!
बुझी हुई बाती सुलगाएं!
आओ फिर से दिया जलाएं!
हम पड़ाव को समझे मंजिल,
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल,
वर्तमान के मोहजाल में
आने वाला कल ना भुलाएँ!
आओ फिर से दिया जलाएं!
आहुति बाकी,यज्ञ अधुरा,
अपनों के विघ्नों ने घेरा,
अंतिम जय का वज्र बनाने,
नव दधिची हड्डिया गलाएँ!
आओ फिर से दिया जलाये!
~ अटल बिहारी बाजपाई
Recent Comments