सोचा कभी नहीं था, मुज से खफ़ा मिलेगा,
शामिल तू मुझ में रहकर, मुझ से जुदा मिलेगा.
तू दर्दे दिल को थामे दुनिया में लाख फिर ले,
ये मर्ज़, मर्ज़ वो है जो ला-दवा मिलेगा.
इन्सान हो तो पहले इन्सां तलक तो पहुँचो,
इतना जो कर सके तो, समजो खुदा मिलेगा.
हर आदमी यहाँ है दिल के इरादे जैसा,
हर वक़्त रंग इसका बदला हुआ मिलेगा.
मेरा ख़याल गोया इक जिस्मे-दोशीज़ा है,
दावा है मेरा तुम को ये अनछुआ मिलेगा.
मिट्टी है जिसके आगे दौलत जहान भर की,
इक माँ के पास ही वो दस्ते-दुआ मिलेगा.
मिलना न मिलना ये तो तक़दीर की हैं बाते,
कोशिश तो कर तु पहले, मत सोच क्या मिलेगा.
उम्मीद है की हमको महफ़िल में एक इन्सां,
देखा हुआ नहीं तो सोचा हुआ मिलेगा.
-हर्ष ब्रह्मभट्ट
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