जीवन पथ जटिल है ये ,
कालचक्र कठिन है ये ,
पग पग पे भेद भाव है ,
रक्त रंजित पाँव है |
जन्म से किसी के सर वंश की छाव है ,
झूठ के रथ पे सवार डाकू ओ का गाँव है ,
किसी के पास है छल कपट ,
किसी को रूप का वरदान है ,
यह सोच के मत बैठ जा की यह विधि का विधान है |
बज रहा मृदंग है , यह कहता अंग -अंग है ,
की प्राण अभी शेष है , मान अभी शेष है ,
उठा ले ज्ञान का धनुष ,
एक कण भी और कुछ मांग मत भगवान से |
ज्ञान की कामना पे लगा दे तू विजय तिलक ,
काल के कपाल पे लिख दे तू यह गुलाल से ,
“की रोक सकता है कोई तो रोक के दिखा मुझे ,
हक़ छीनता आया है जो अब छीन के बता मुझे ”
ज्ञान के मंच पर सब एक समान है ,
ज्ञान के मंच पर सब एक समान है ,
विधि का विधान पलट दे , वोह ब्रह्मास्त्र ज्ञान है |
तोह आज से यह ठान ले , यह बात गाँठ बाँध ले ,
की कर्म के कुरुषेत्र मैं न रूप काम आता है ,
न झूठ काम आता है , न जाति काम आती है ,
न बाप का नाम काम आता है ,
सिर्फ ज्ञान ही आपको आपका हक़ दिलाता है |
सिर्फ ज्ञान ही आपको आपका हक़ दिलाता है |
– हरिवंशराय बच्चन
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