इश्वर अल्लाह तेरे जहांमें
नफरत क्युं है, जंग है क्युं ?
तेरा दिल तो इतना बडा है,
इन्सानका दिल तंग है क्युं ?
कदम कदम पर सरहद कयुं है,
सारी झमीं जब तेरी है, सूरज के फेरे करती है,
फिर क्युं इतनी अंधेरी है ?
इस दुनिया के दामन पर
इन्सान के लहूका रंग है क्युं ?
इश्वर अल्लाह तेरे जहांमें…..
गूंज रही है कितनी चीखें,
प्यारकी बातें कौन सुने,
टूट रहें है, कितने सपने, इनके टुकडे कौन चुने ?
दिलके दरवाझों पर ताले, तालों पर ये झंग है कयुं ?
इश्वर अल्लाह तेरे जहांमें…..
– जावेद अख्तर
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