मस्जिद में ना खुदा पाया ,
मंदिर में ना इश्वर दिखा ,
गिरजाघर भी सूना पाया ,
फिर कुरान का पाठ किया ,
और झमझम का आस्वाद लिया |
गीता गान पूरा कर ,
गंगाजल का पान किया |
बाइबल के भी पन्ने टंटोले,
सोचा जिसस मिल जायेगा |
थोडा सा सहम गया ,
हक्का-बक्का सा रह गया |
” दुनिया बड़ी समजदार है –
उपरवाले के नाम पर ऐसे ही तो
उहापोह नही मचाती होगी ? “
यह सोच और एक बार खोज लगाई |
फिर भी आलय खाली पाया |
बाहर जाते ,
एक ‘मासूम ‘ को ,
बेबस और लाचार पाया |
शायद खोज खत्म हुई |
शायद खोज खत्म हुई ||
– जगत निरुपम
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