जिन परिस्थितियों से हम सब कई महीनों से गुज़र रहे हैं , उन्हें देख सुन कर बाबूजी की एक कविता याद आती है …
रूस में एक गुड़िया बनती है , Matrushka , जिसको यदि बीच में खोलो तो उसके अन्दर एक और छोटी गुड़िया निकलती है , फिर उसे खोलो तो एक और … और इसी तरह से निकलती जाती हैं ..
बाबूजी ने कविता लिखी ~
–अमिताभ बच्चन
———————————————————————————————-
” गुड़िया के अन्दर गुड़िया है , गुड़िया अन्दर गुड़िया
औ फिर गुड़िया के अन्दर गुड़िया फिर गुड़िया में गुड़िया ..
मैंने इक दिन सबसे छोटी गुड़िया से पुछा , गुड़िया !
तू कितनी गुड़ियों के अन्दर , क्या तेरा यह जाना ?
इतना सुनकर मुझसे बोली सबसे छोटी गुड़िया …
कि, दुनिया के अन्दर दुनिया है , दुनिया अन्दर दुनिया ,
औ फिर दुनिया के अन्दर दुनिया , फिर दुनिया में दुनिया !
तू कितनी दुनियों के अन्दर , भान तुझे इन्सान ? “
— हरिवंशराय बच्चन
Recent Comments