क्या लिखू के वोह परियो का रूप होती हें?
की कड़कती ठण्ड में सुहानी धुप होती हें
व्हो होती हें चिढिया की चेहचाहट की तरह
या कोई निश्चल खिलखालाहट होती हें?
क्या लिखू के वोह परियो का रूप होती हें?
की कड़कती ठण्ड में सुहानी धुप होती हें
वोह होती हें उदासी के हर मर्ज़ की दवा की तरह
या उमस्म शीतल हवा की तरह
वोह चिढियो चेहचाहट हें?
या कोई निश्चल खिलखालाहट हें?
वोह आँगन में फैला कोई उजाला हें?
या मेरे गुस्से को लगा ताला हें?
पहाड़ की चोटि पर सूरज की किरण हें
वोह जिंदगी सही जीने का आचरण हें
वोह ताकत जो छोटे से घर को महल कर दे
वोह काफिया जो किसी ग़ज़ल को मुकम्मल कर दे
क्या लिखू?
क्या लिखू के वोह परियो का रूप होती हें?
की कड़कती ठण्ड में सुहानी धुप होती हें
वोह अक्षर जो न हो तो वर्णमाला अधूरी हें
वोह जो सब से ज्यादा ज़रूरी हें
यह नहीं कहूँगा के वोह हर वक़्त सास सास होती हें
क्यू के बेटिया तो सिर्फ एक एहसास होती हें
क्यू के बेटिया तो सिर्फ एक एहसास होती हें
उसकी आँखे न मुझसे गुडिया मांगती हें
न मांगती हें कोई खिलौना
कब आओगे? बस एक छोटा सा सवाल सलोना
जल्दी आऊंगा !
अपनी मज़बूरी को छुपाते देता हूँ में जावाब
तारीख बताओ समय बताओ
वोह उंगलियो पे करने लगती हें हिसाब
और जब में नहीं दे पाता सही सही जवाब
आपने आंसुओ को छुपाने के लिए
वोह चहरे पर रख लेती हें किताब
वोह मुझसे विदेश में छुट्टिय
अच्छी गाडियो में घूमना
फाइव स्टार में खाने
नए नए खिलोने नहीं मांगती
न की वोह ढेर सारे पैसे
अपने गुल्लक में उधेलना चाहती हें
वोह तो बस कुछ देर
मेरे साथ खेलना चाहती हें
पर वही बात बेटा काम हें
बोहत सारा काम हें
काम करना ज़रूरी हें
नहीं करूँगा तो कैसे चलेगा?
जैसे मज़बूरी हमें दुनिया दारी
के जवाब देने लगती हें
और व्हो जूठा ही सही मुझे एहसास कराती हें
जैसे सब बात वोह समज गयी हो
लेकिन आँखे बंध कर के व्हो रोंती हें
सपने में खेलते हुए मेरे साथ सोती हें
जिंदगी न जाने क्यू इतनी उलज जाती हें?
और हम समजते हें की बेटिया सब समज जाती हें
-शैलेश लोधा
(This Poem is Written by Sailesh Lodha an Actor and Poet who is seen in SAB TV’s “Tarak Mehta’s Ulta Chashmaa” as Tarak Mehta him Self for his Daughter who was admitted in Hospital some time ago.
)
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