रेलगाड़ी.. रेलगाड़ी….!
चलना मेरा काम है,
थकने का ना नाम है !
अनजानों से मिलती हूँ ,
नये नजारे बटोरती हूँ !
शंखनाद सम आवाज़ मेरी
है वो आसमान को छूती,
रंक हो या राय हो ,
सब मेरी आस लगाते !
एक दिन आ गया उसे गुमान ,
वो बोली में ही जग की रानी हूँ ,
पूरा जहों घूमती समराग्नि हूँ ,
बिन मेरे कुछ संभव नही !
तब पटरी ने मौन तोडा ,
बोली, कल तू चलना मेरे बिना !
समज गयी रेलगाड़ी शान में,
और बढ़ रही वो अपनी राह पे !
* हमारे आसपास भी कुछ लोग रेलगाड़ी की तरह शोर मचाना नही छोड़ते , जबकि कुछ लोग पटरी की तरह बिना कुछ बोले अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ते और दूसरो के लिए आधारस्तंभ बने रहते है ! (
– जगत निरुपम
Aug 04, 2010 @ 09:19:59
Bahut khub!!!Bahut khub!!Really very true…..” हमारे आसपास भी कुछ लोग रेलगाड़ी की तरह शोर मचाना नही छोड़ते , जबकि कुछ लोग पटरी की तरह बिना कुछ बोले अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ते और दूसरो के लिए आधारस्तंभ बने रहते है !
go ahead….Best wishes
nirupam
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Aug 06, 2010 @ 12:18:03
excellent.Keep it up!
Sep 06, 2018 @ 13:30:58
अक्सर लोग अपने आधार स्तब्ध को ही निराधार समझने की भूल कर बैठते हैं। कविता के माध्यम से जीवन का मत्वपूर्ण सन्देश दिया है आपने, धन्यवाद।