रेलगाड़ी.. रेलगाड़ी….!
चलना मेरा काम है,
थकने का ना नाम है !
अनजानों से मिलती हूँ ,
नये नजारे बटोरती हूँ !
शंखनाद सम आवाज़ मेरी
है वो आसमान को छूती,
रंक हो या राय हो ,
सब मेरी आस लगाते !
एक दिन आ गया उसे गुमान ,
वो बोली में ही जग की रानी हूँ ,
पूरा जहों घूमती समराग्नि हूँ ,
बिन मेरे कुछ संभव नही !
तब पटरी ने मौन तोडा ,
बोली, कल तू चलना मेरे बिना !
समज गयी रेलगाड़ी शान में,
और बढ़ रही वो अपनी राह पे !
* हमारे आसपास भी कुछ लोग रेलगाड़ी की तरह शोर मचाना नही छोड़ते , जबकि कुछ लोग पटरी की तरह बिना कुछ बोले अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ते और दूसरो के लिए आधारस्तंभ बने रहते है ! (
– जगत निरुपम
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